PCI (फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया) मान्यता प्राप्त बीफार्मा/डीफार्मा कोर्स में प्रवेश संबंधित जानकारी हेतु संपर्क करें : +919044424340
1) बीफार्मा चार वर्ष का बैचलर ग्रेजुएशन कोर्स है , जबकि डी फार्मा दो वर्ष का डिप्लोमा कोर्स है ।
2) बीफार्मा करने के बाद आपको स्नातक / ग्रेजुएट बनने के लिए अलग से कोई भी बैचलर कोर्स करने की आवश्यकता नहीं होती । जबकि डी फार्मा करने के बाद आपको स्नातक हेतु अलग से बैचलर कोर्स करने की आवश्यकता होती है ।
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3) बीफार्मा और डी फार्मा दोनो ही कोर्स करने के उपरांत आप किसी हॉस्पिटल , मेडिकल स्टोर में बतौर फार्मासिस्ट कार्य कर सकते हैं या फिर बतौर फार्मासिस्ट खुद की दवा का दुकान भी चला सकते हैं ।
4) PCI यानी फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के नए नियमानुसार आपको किसी भी शैक्षिक संस्थान से डी फार्मा करने के बाद , एक एग्जिट एग्जाम देना होगा । मान लीजिए आपने किसी संस्थान से डी फार्मा उत्तीर्ण कर लिया लेकिन आप PCI द्वारा आयोजित एग्जिट एग्जाम उत्तीर्ण न कर सके तो आपकी डी फार्मा का कोई औचित्य नहीं होगा ।
दूसरी तरफ बीफार्मा के लिए अभी तक एग्जिट एग्जाम का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है ।
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5) बीफार्मा करने का सबसे बड़ा लाभ ये है की बीफार्मा के बाद आपका कैरियर सिर्फ फार्मासिस्ट (दवा वितरण/विक्रय) के तौर पे ही सीमित नहीं रहता । बल्कि आपको क्लिनिकल फार्मासिस्ट , पैथोलॉजिकल लैब साइंटिस्ट, केमिकल/ड्रग टेक्नीशियन , ड्रग इंस्पेक्टर , हेल्थ इंस्पेक्टर , फार्माकोलॉजिस्ट , मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव जैसे बेहतरीन कैरियर ऑप्शन भी मिलते हैं जहां डी फार्मा डिप्लोमा के बजाय बीफार्मा बैचलर डिग्री को अधिक वरीयता मिलती है ।
6) बीफार्मा के बाद एक लाभ ये भी है की क्लिनिकल फार्मासिस्ट का अनुभव होने के उपरांत भविष्य में क्लिनिकल फार्मेसी खोलने की भी अनुमति मिल सकती है (रिपोर्ट्स के अनुसार फिलहाल PCI और सरकार इस प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं) , क्योंकि क्लिनिकल फार्मासिस्ट को एक रजिस्टर्ड प्रैक्टिशनर के देखरेख में स्वयं ही मरीजों को प्राथमिक इलाज करने की अनुमति प्राप्त रहती है ।
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